वर्तमान युग में राष्ट्र के विकास के लिए विद्दुत प्रदाय रीढ़ की हड्डी की तरह है | भारत वर्ष में विद्दुत आपूर्ति उद्दोग सर्वप्रथम 1910 में भारतीय विद्दुत अधिनियम,1910 के अन्तगर्त विधिक रूप से नियंत्रित किया गया था | सन् 1948 में विद्दुत आपूर्ति अधिनियम प्रयोज्य किया गया एवं विद्दुत नियामक आयोग अधिनियम,1988 के द्वारा इसमे सुधार किए गए | इन तीनों अधिनियम के उपबन्धों को समग्र रूप से युक्तियुक्त बनाने के लिए राज्यों, स्टॉक धारकों तथा विशेषज्ञ से विचार-विमर्श के पश्चात् विद्दुत अधिनियम,2003 को भारतीय संसद दारा पारित किया गया |
विद्दुत के उत्पादन, पारेषण, वितरण, व्यापार और प्रयोग से सम्बंधित, विद्दुत उद्दोग में प्रतियोगितात्मक विकास करने के लिए तथा उपभोक्ताओ के हित सरक्षण हेतु देश के समस्त भागों में विद्दुत की आपूर्ति करने, विद्दुत शुल्क के युक्तियुक्तकरण करने, विद्दुत दरों में छूट से सम्बन्धी पारदर्शी नीतियों को सुनिश्चित करने,विद्दुत प्रदाय की हितेषी नीतियों को दक्ष एवं पर्यावरणीय तरीके से विकसित करने, केन्द्रीय विद्दुत प्राधिकरण, राज्य नियामक आयोगों का गठन करने एवं अपीलीय अधिकरण की स्थापना करने के लिए एवं विधि को सुव्यवस्थित रूप से स्थापित करने हेतु विद्दुत अधिनियम,2003 निर्मित किया गया |
भारतीय विद्दुत अधिनियम,1910 के द्वारा भारत में आपूर्ति उधोग के फ्रेमवर्क का निर्माण किया गया | इस अधनियम ने विद्दुत उधोग का विकास निजी अनुज्ञप्तियों के माध्यम से प्रतिपादित किया एवं विद्दुत आपूर्ति के सम्बन्ध में विद्दुत लाइनों को स्थापित करने के लिए विधिक सरचना का निर्माण किया | स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् पर इसी सरचना को विकसित करते हुए विद्दुत को पूर्णतया शासकीय विभाग बनाने से स्थान पर विद्दुत आपूर्ति अधिनियम, 1948 के दारा राज्य विद्दुत मण्डल बनाने के लिए प्रक्रिया अंगीकार की गई |
राज्य विद्दुत मण्डल का उत्तरदायित्व राज्य में विद्दुत उत्पादन एवं आपूर्ति की व्यवस्था करना सुनिश्चित किया गया | यह अनुभव किया गया की शहरों तक सीमित विद्दुतिकरण को शीघ्र ही गावं-गावं में विस्तारित करने की आवश्यकता है | राज्य का,राज्य विद्दुत मण्डलों के माध्यम से इस उत्तरदायित्व का निर्वहन करना निश्चित किया गया |राज्य विद्दुत मण्डलों ने पंचवर्षीय योजनओं के माध्यम से योजना कोष का उपयोग करते हुए अपने-अपने कार्यछेत्रो में विद्दुत का विस्तारीकरण कार्य सामाजिक उतरदायित्व के रूप में किया |
इससे कालांतर में राज्य विद्दुत मण्डलों के कार्य सम्पादन में अनेक कारणों से व्यवसायिक रूप से लगातार हानि दर्ज की गई,क्योकि विद्दुत की दरों का निर्धारण व्यवहारिक तौर पर राज्य सरकारों दारा किया जाता रहा, क्रास सबसिडी अत्यंत उच्च स्तर तक पहुच चुकी थी,अत: इस समस्या का हल निकलने के लिए सरकार को टेरिफ निर्धारण में हस्तक्षेप से अलग करने के लिए विद्दुत नियामक आयोग अधिनियम,1998 पारित किया गया | इस अधनियम के द्वारा केन्द्रीय विद्दुत नियामक आयोग का गठन किया गया |अधिनियम के उपबन्धों के अनुसार राज्य सरकारों राज्य विद्दुत नियामक आयोग स्थापित कर सकती है |
नियामक आयोग अधिकार सम्पन्न भी किया गया | अनेक राज्यों जिनमे उड़ीसा, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, राजस्थान, उत्तरप्रदेस, मध्यप्रदेश, छतीसगढ़, दिल्ली, आदि राज्य शामिल हैं, ने राज्य नियामक आयोग का गठन किया एवं प्रमुखता से अपने विद्दुत मण्डलों को भंग करके उत्पादन, पारेषण और वितरण कंपनिया स्थापित की है |
विद्दुत अधिनियम को संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिए जाने पर 10 जून, 2003 से यह विद्दुत अधिनियम, 2003 के रूप में प्रभावी है |
विद्दुत अधिनियम 2003 संक्षिप्त नाम,विस्तार और प्रारंभ-
(1) इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम विद्दुत अधिनियम,2003 है |
(2) इसका विस्तार,जम्मू-कश्मीर राज्य के सिवाय,सम्पूर्ण भारत पर है |
(3) यह उस तारीख2 को प्रवृत होगा जो केंद्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा,नियत करे :
परन्तु इस अधिनियम के भिन्न-भिन्न उपबन्धों के लिए भिन्न-भिन्न तारीखें नियत की जा सकेंगी और किसी ऐसे उप्बन्ध में इस अधिनियम के प्रारंभ के प्रति निर्देश का ऐसा अर्थ लगाया जायेगा जेसे कि वह उस उपबन्ध के प्रतवर्तन में आने के प्रति निर्देश हो |
नोट: समय समय पर इस कानून में संशोधन किया जाता है जिसे हम इस आर्टिकल में भी अपडेट करते रहेंगे |
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